जातिगत जनगणना के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने कोई सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। सोशल मीडिया में इसे इस तरह से प्रचारित किया जा रहा है कि जैसे इस मामले पर बिहार सरकार की हार हो गई है और अब जातिगत जनगणना नहीं की जा सकेगी। लेकिन संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय में हुई आज की सुनवाई को किसी पक्ष की जीत या हार की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। यह केवल एक प्रक्रियागत मामला है। आगे की सुनवाई में संवैधानिक स्थितियों को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय अपना कोई भी निर्णय सुना सकता है।
इस विषय पर संविधान के विशेषज्ञों की राय जानने से पहले यह समझ लेते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में आज क्या हुआ? दरअसल, जब पटना हाई कोर्ट ने जातिगत जनगणना को असंवैधानिक बताते हुए इस पर रोक लगा दी थी, और आगे की सुनवाई के लिए 03 जुलाई की तारीख तय की थी, बिहार सरकार ने कोर्ट के अंतिम आदेश की प्रतीक्षा किए बिना सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर लिया। सरकार ने हाई कोर्ट के स्टे को रोकने की अपील की थी।
लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहते हुए इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया कि अभी यह मामला हाई कोर्ट में चल रहा है। इस पर तीन जुलाई की तारीख भी तय है। ऐसे में बिहार सरकार को पहले पटना हाई कोर्ट में अपना पक्ष रखना चाहिए। हालांकि, वहां पर आए निर्णय से असंतुष्ट होने की स्थिति में बिहार सरकार 14 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय में आ सकती है और अपना पक्ष रख सकती है।
अब सुनें संविधान विशेषज्ञ ने क्या कहा
संविधान विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता आभा सिंह ने कहा कि यह पूरी तरह एक प्रोसीजरल मामला है। इसे किसी पक्ष की जीत या हार की तरह नहीं देखा जा सकता। दरअसल आजकल यह चलन बढ़ गया है कि हर मामले में लोग सबसे पहले सर्वोच्च न्यायालय का ही रुख करने लगता है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने पहले भी कई मामले में स्पष्ट कर चुका है कि किसी भी पक्ष को पहले निचली अदालतों या हाई कोर्ट में अपील करनी चाहिए। जब वहां उन्हें न्याय न मिले तब उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की ओर रुख करना चाहिए।
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आभा सिंह ने कहा है कि इस तरह का निर्देश देने के पीछे सर्वोच्च न्यायालय की मंशा बेहद स्पष्ट होती है कि यदि सभी मामले सर्वोच्च न्यायालय की दर पर ही सुलझाए जाएंगे, तो ऐसे में हाई कोर्ट की गरिमा और अधिकार क्षेत्र कम होगा। लेकिन न्याय पालिका की स्पष्ट कानूनी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हर कार्य प्रक्रिया के आधार पर होना चाहिए। इस मामले में यदि बिहार सरकार को पटना हाई कोर्ट में कोई राहत नहीं मिलती है तो वह सर्वोच्च न्यायालय जाने के लिए स्वतंत्र होगा।
लेकिन यह मामला है बिहार सरकार के खिलाफ
स्पष्ट कानूनी स्थिति के बाद भी संविधान विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार सरकार इस मामले में बैकफुट पर है और उसे बहुत ज्यादा रिलीफ मिलने की संभावना बहुत कम है। इसका मूल कारण है कि संविधान में निर्दिष्ट दिशा निर्देशों के अनुसार जनगणना का विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। ऐसे में बिहार सरकार के पास जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं है।
इसी कानूनी स्थिति से बचने के लिए बिहार सरकार ने पटना हाई कोर्ट में इसे जातिगत जनगणना कहने की बजाय सर्वे करने की बात कहकर बीच का रास्ता निकाला था, जिससे जातिगत जनगणना भी हो जाए और उसके रास्ते में कोई कानूनी बाधा भी न आए। बिहार सरकार ने अपनी दलील में कहा है कि यह एक सर्वे है जिसमें लोगों की जातिगत जनसंख्या जानकर लाभकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाना संभव होगा। बिहार की यह दलील हाई कोर्ट या सर्वोच्च न्यायालय किस हद तक स्वीकार करेगा, यह देखने वाली बात होगा।